Best Gazal Quotes in Hindi for Whatsapp | ग़ज़ल
वक़्त गुज़रता गया दूरियाँ बढ़ती गयीजिंदगी यू हीं हर शाम ढलती रहीहर रोज़ मुझसे रूठ जाते थे किसी बात परहर रोज़ मेरी तकदीर बस यूँ बदलती रहीख्वाब आएँगे कैसे इन सुनसान रातों मैंतेरी बिना नींद भी बस मचलती रहीरंज़ की तपिश मे खाक हो गया सब कुछआंसूओ में यूँ ही जिंदगी पिघलती रही
महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया हैतभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया हैअकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया हैतुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया हैकिसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होताजो मेरे दिल में रहता है हमेशा, वो पराया है
यू ,मुझे तड़पता, छोडकर जाने वाले,लौट आ मेरा आशियाँ सजाने वाले,यू तन्हा जीना, बहुत मुश्किल होगा,बहुत सतायेंगे मुझे, ये ज़माने वाले,पर तुम मेरी मोहब्बत का,भरम रखना,कई आयेंगे,तुमको अपना बनाने वाले.
उनके जाने के बाद,तन्हाई का सहारा मिला है,इसकी आगोश में आये, फिर निकलना नही आया,उनकी फितरत ही रही, कुछ मौसम की तरह,हमें,मौसम की तरह, फिर बदलना नही आया,यू तो और भी बहुत,तलबगार थे,इस”मन”केपर इश्क में पाबंद था, फिर बहकना नही आया.
मोहब्बत में टूटे, तो फिर संभालना नही आया,उनसे बिछड़े है जबसे, फिर मचलना नही आया,मेरे दिल की,तासीर ही कुछ ऐसी रही कि,उनसे किये वादों से, फिर मुकरना नही आया.
ताउम्र भटकती रही लहरों में कश्ती मेरी,नसीबों को मयस्सर कभी किनारा ना हुआ,वो ऐसा गया मेरी नजरों से बहुत दूर कंही,नजरों को उनका फिर कभी नज़ारा ना हुआ,क्यों दिल लगाया था तूने उस बेबफा से,“मन”तेरा फिर कंही कभी गुजारा ना हुआ.
तेरा जाना दिल को कभी गँवारा ना हुआ,ऐसा रूठा हमसे फिर कभी हमारा ना हुआ,बहुत हसरत रही कि तेरे साथ चले हम,बस तेरी और से ही कभी इशारा ना हुआ,मौत अच्छी थी जिसने उठाया था मुझको,जिन्दगी यू तेरा मुझे कभी सहारा ना हुआ.
बात जुबाँ पे ना सही, दिल में दबा रखना,जगह थोड़ी सी सही, दिल में बना रखना,गर,बात निकल आये, मेरी चाहत की कभी,तुम,मेरी बर्बाद मोहब्बत की, अना रखना,तुम , मुझे चाहो, न चाहो कोई बात नही,बस,मेरी चाहत को, दिल में बसा रखना,यंहा,मेरे नसीब में रहे, हज़ारों गम सही,तुम आशियाना खुशियों का, सजा रखना.
मिट्टी के घरोंदे है, लहरों को भी आना है,ख्बाबों की बस्ती है, एक दिन उजड़ जाना है,टूटी हुई कश्ती है, दरिया पे ठिकाना है,उम्मीदों का सहारा है,इक दिन चले जाना है,बदला हुआ वक़्त है, ज़ालिम ज़माना है,यंहा मतलबी रिश्ते है, फिर भी निभाना है,वो नाकाम मोहब्बत थी, अंजाम बताना है,इन अश्कों को छुपाना है, गज़ले भी सुनाना है,इस महफ़िल में सबको, अपना ही माना है.
नाजुक सी मोहब्बत है, दुश्मन ज़माना है,ये जन्मों का रिश्ता है, पर सबसे छुपाना है,क्या तेरी मज़बूरी है, क्यों तुम्हें जाना है,ये शीशे सा दिल है, पल में बिखर जाना है,यंहा दीवानों का बस, मैखाना में ठिकाना है,खुमार मोहब्बत का, सबका उतर जाना है,अभी सबके ओठों पे, एक हसीं तराना है,फिर गीत जुदाई के, यंहा सबको गाना है,बेजां हुआ है दिल, कातिल वो पहचाना है,बिंदास शमा से, परवाने को जल जाना है,क्यों दस्तूर मोहब्बत का, ये बहुत पुराना है,आँखों के पानी को, अश्कों में बदल जाना है,
अभी नादाँ हु इश्क में, जताऊ कैसे,प्यार कितना है, तुमसे बताऊ कैसे,बहुत चाहत है, दिल में तुम्हारे लिये,तुम ही कहो, तुम्हें अपना बनाऊ कैसे,जो अगन मेरे दिल में है, तुम्हारे लिये,वही आग तेरे दिल में भी, जलाऊ कैसे,
मेरे गम का क्या सबब है क्या तुम्हे मालूम हैदर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम हैमानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगरसादगी उसकी गज़ब है क्या तुम्हे मालूम हैइश्क है गहरा समन्दर पार जाता है वहीडूबने का जिसको ढ़ब है क्या तुम्हे मालूम है.
क्या जाने कब कहाँ से चुराई मेरी ग़ज़लउस शोख ने मुझी को सुनाई मेरी ग़ज़लपूछा जो मैंने उससे कि है कौन खुशनसीबआँखों से मुस्कुरा के लगाई मेरी ग़ज़लएक-एक लफ्ज़ बन के उठा था धुआं-धुंआउसने जो गुनगुना के सुनाई मेरी ग़ज़लहर एक शख्स मेरी ग़ज़ल गुनगुनाये है‘राही’ तेरी जुबां पे न आई मेरी ग़ज़ल
जाने कब से तरस रहे हैं, हम खुल कर मुस्कानें कोइतने बन्धन ठीक नहीं हैं, हम जैसे दीवानों कोलिये जा रहे हो दिल मेरा, लेकिन इतना याद रहेबेच न देना बाज़ारों में, इस अनमोल ख़जाने कोतन की दूरी तो सह लूँगा, मन की दूरी ठीक नहींप्यार नहीं कहते हैं केवल, आँखों के मिल जाने को
हम उन्हें वो हमें भुला बैठेदो गुनहगार ज़हर खा बैठे|हाल-ऐ-ग़म कह-कह के ग़म बढ़ा बैठेतीर मारे थे तीर खा बैठे|आंधियो जाओ अब आराम करोहम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे|
उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँमेहरबाँ होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्तमैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ
जब लगे ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जायेहै यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाये|तिश्नगी कुछ तो बुझे तिश्नालब-ए-ग़म कीइक नदी दर्द के शहरों में बहा दी जाये|हम ने इंसानों के दुख दर्द का हल ढूँढ लियाक्या बुरा है जो ये अफ़वाह उड़ा दी जाये.
इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह हैये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली मेंजब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैआते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।
होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आतेसाहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारीआंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।दिल उजडी हुई इक सराय की तरह हैअब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा मेंफिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
अब तो ये भी नहीं रहा एहसासदर्द होता है या नहीं होता ।इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वाआदमी काम का नहीं होता ।
जिन्दगी कुछ थका थका हूँ मैंदेख ले लड़खड़ा रहा हूँ मैंरेत में ढूँढता रहा मोतीक्या कहूं कितना बावला हूँ मैंजा चुका मेरा काफिला आगेथा जहां पर वहीं खड़ा हूँ मैंखूबियां पूछता है क्यों मेरीकुछ बुरा और कुछ भला हूँ मैंअपनी सूरत कभी नहीं देखीलोग कहते हैं आइना हूँ मैं
पाँव जब भी इधर-उधर रखनाअपने दिल में ख़ुदा का डर रखनारास्तों पर कड़ी नज़र रखनाहर क़दम इक नया सफ़र रखनावक़्त, जाने कब इम्तेहां माँगेअपने हाथों में कुछ हुनर रखना